पूस प्रवास भाग 05 और 06 । हिन्दी कहानियां ।

" पूस प्रवास " भाग- 05
( सफरनामा )


गूची जी के मूल प्रश्नों का निवारण तो लगभग हो चुका था, पर इस सुंदर  नवयुवती से लगातार संवाद की लालसा गूची जी के मन से ना जाती थी, सो रह रह कर एक छोटू मोटू गोलू लोलू सा सवाल नवयुवती की तरफ उछाल देते थे । अब तक तो नवयुवती सामान्य शिष्टाचार और सीट पर टिके रहने की मजबूरी में धैर्य से काम ले रही थी पर अब उसके चंद्रमुखी चेहरे पर खीझ की रेखा लम्बी होती जा रही थी । इस बार भी बड़ी उत्सुकता से गूची जी ने तरूणी के तरफ एक बेहद व्यवहारिक प्रशन फेंका- 
" आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया । "
इस बार थोड़ी खीझ के साथ तरूणी ने गूची को देखा, लड़की के देखने के तेवर से गूची को ऐसा आभास हुआ मानों यह प्रशन पूछ कर उसने इस बार लक्ष्मण रेखा लांघ दी है ।
थोड़ी देर तो लड़की बिल्कुल ही मौन रहीं, मानों अपने क्रोध रूपी विष को कंठ में ही धारण करने की प्रेक्टिस कर रही हो और लड़की को ऐसे मौन हुए देखकर गूची जी ने सोचा कि कहीं ये तूफां से पहले का सन्नाटा तो नहीं पर फिर लड़की ने मुख पर एक उदार कृत्रिम मुस्कान बिखेरते हुए कहा कि- " जी मेरा नाम कल्लू है " 
"अरेर , आप जैसी सुंदर और माडर्न लड़की का नाम कल्लू !!  ये कैसा नाम है, ? " गूची ने बिना किसी विस्मय के साधारण भाव से ये बात कही क्योंकी गूची समझ रहा था कि लड़की ने खीझ कर ये नाम बताया है । इधर लड़की के सब्र का बांध गूची के सवालों के थपेड़े से बस टूटने ही वाला था शायद इसलिए लड़की ने अपने बैग से कुछ दालमूट और चिप्स के पैकेट निकाले और एक पैकेट गूची को भी आॅफर किया । गूची को लगा शायद लड़की सवालों से मुक्ति चाहती है इसलिए मुंह बंद करवाने को चिप्स आॅफर कर रही है, शुरूवाती ना नुकुर के बाद गूची जी ने झेंप कर चिप्स का वो पैकेट ले ही लिया और खाने लगे । गूची को चिप्स खाता देख लड़की के चेहरे पर सुकून के भाव उभरे, गूची को लगा शायद सच में लड़की मेरे सवालों से बोर चुकी थी, फिर गूची ने अपने स्वाभिमान की खातिर मन ही मन तय किया कि अब वो लड़की से कोई बातचीत नहीं करेगा और चुपचाप सो रहेगा ।,,
क्रमशः,,
" पूस प्रवास " भाग- 06
( सफरनामा )
यूं तो कहते हैं कि इंसान अपने संवेदनाओं के कारण ही इंसान हो पाता है, इन संवेदनाओं में प्रेम सबसे ताकतवर संवेदना होती है । इंसान जब किसी मनोभाव के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है तो उसे किसी दूसरे मनोभाव से प्रतिस्थापित कर लेता है जैसे यदि किसी के प्रति मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाए और यह ईर्ष्या विसराने योग्य ना हो तो धीरे धीरे मन उस ईर्ष्या को द्वेष में बदल लेता है, ठीक वैसे ही जब प्रेम का प्रत्युत्तर प्रेम में ना मिले तो मानव मन को अपना स्वाभिमान याद आता है। इस लड़की के ऐसे तंज भरे लहजे ने भी गूची जी के स्वाभिमान को जागृत कर दिया था, सो संवाद की लाख लालसा होते हुए भी उन्होंने इस लड़की से अब बात ना करने की लगभग कसम खा ली थी, हां लेकिन इतना शिष्टाचार जरूर बनाए हुए थे कि लड़की को बैठने में कोई तकलीफ़ ना हो, सीट के बिल्कुल कोने में बैठी हुई लड़की को पूरी सीट दे देने की प्रबल इच्छा हो रही थी परन्तु अपना स्वाभिमान बार बार आड़े आ जा रहा था, किसी तरह गूची जी अपना हाथ पांव समेटे बर्थ के दूसरे कोने में दुबके हुए थे, कुछ कुछ ये ठंड का भी असर था, ज्यो ज्यो ट्रेन बिहार की तरफ बढ़ती चली जा रही थी ठंड भी पूरी तरह जमीं पर उतर आने को आतुर हो रहा था, कोहरे ने तो वैसे भी ट्रेन के पहियों को भारी कर रखा था, घने कोहरे में बमुश्किल ही आगे का कुछ हिस्सा दिख पाता था, जल्द ही इस सफर ने हसीं शाम के बाद शबनमी रात में प्रवेश किया, वैसे तो ट्रेन के सफर में सो जाना गूची जी के यात्रा कौशल पर प्रश्नचिन्ह के माफिक था, पर पता नहीं कैसे उकडू होकर लेटे हुए होने के बावजूद इस बार उनकी आंख लग गयी थी । आंखें खुली तो कैसा विस्मयकारी परिदृश्य देखा गूची जी ने, लगभग चित्कार भरे लहजे में बगल के बुजुर्ग सहयात्री दंपति से पूछा- " अरेरर, यह लड़की कहां गई, " इतने आत्मविश्वास के साथ गूची ने उस लड़की की खोज लेनी चाही मानों उस लड़की की पूरी जिम्मेदारी परमात्मा ने गूची को ही सौंपी थी । बगल के वृद्ध सज्जन ने कहा - " कहां गई मतलब ? वो तो तुम्हारे साथ थी ना, क्या बिना बताए उतर गई? " 
 गूची ने किसी लूटे पिटे सम्राट के भाव लेते हुए पूछा - " मेरे साथ !! नहीं तो !! मैंने तो बस उसे यहां बैठने भर की जगह दी थी ?? पता नहीं ?? कौन से स्टेशन पर उतर गई ? " 
बुजुर्ग ने मुख मंडल की भाव भंगिमा बिगाड़ते हूए कहा- "अब तुम लोग इतने सहज भाव के साथ चना चबेना का आदान-प्रदान कर रहे थे कि हमें तो लगा कि तुम दोनों साथ में ही हो, जब वो जमुई स्टेशन के पास जाने को हुई तो हमें तो थोड़ा अचरज हुआ पर कुछ बोलना हमने उचित नहीं समझा ।" 
बुजुर्ग की बातें गूची जी के मन मस्तिष्क पर ऐसा आघात कर रही थी मानो गूची जी ने किसी जीती हुई लाॅटरी का टिकट खो दिया हो । 
क्रमशः,,,

सदानन्द कुमार

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