हास्य व्यंग कविता हिन्दी || राजनैतिक व्यंग शायरी || राजनीति पर व्यंग्य कविता || ' नेता गर बनना हो '

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वैसे तो आप लोग पढ़ें लिखे लोग हैं और इससे पहले आपने अनेकों हास्य व्यंग कविता हिन्दी , राजनैतिक व्यंग शायरी और राजनीति पर व्यंग्य कविता इत्यादि पढ़ रखें होंगे । पढ़ कर पचा भी चुके हैं इसलिए आशा करता हूं कि आप लोग मुझे भी फैलने का अवसर जरूर देंगे ।

दोस्तों जैसा कि आप सब जानते ही हैं कि आजकल दूसरों की खटिया खड़ी कर देने का दौर है, कोई किसी बहाने मेरी खटिया खड़ी ना कर दे इसलिए मैं पहले ही एक डिस्क्लेमर दे देना चाहता हूं कि यह कविता पूर्णतः मौज मस्ती में लिखी गई कविता है, इसको गंभीरता से न लें और न ही इससे अपनी भावनाओं को आहत होने दें, ये कविता भावनाएं आहत करने के लिए नहीं लिखी गई है ।

हां एक बात और कविता में मात्रा और वर्ण की खामियां निकाल कर मेरी भी भावनाएं आहत न करें । 

छोटा सा कवि उछलना चाहता है तो इसमें आपसब का सहयोग अपेक्षित है, ध्यान रहे उछलना चाहता हूं ऐसा न हो कि आप लोग मुझे कुदा दें वो भी गड्डे में ।

उछलने और कूदने में फर्क होता है भाई !

तो ज्यादा चकलल्स न करते हुए प्रस्तुत है मेरी स्वरचित रचना

' नेता गर बनना हो ' 

( हास्य व्यंग कविता हिन्दी || राजनैतिक व्यंग शायरी )


नेता गर बनना हो, ये दिल में तमन्ना हो

काम चुन कर कोई, ऐसा नीच कीजिए,


चाहते हो आपको जो, मानते हो आपको जो

खोपचे में ले जाकर, उन्हें मूड़ लीजिए


लंबी लंबी फेंका करें, कभी भी ना झेंपा करें

पप्पु फेंकु होने तक,  फाड़ू  स्पीच दीजिए


मुख पर तेज रहे, इतना करेज रहे

गुरु जी की लंगोटी को , फाड़े फाड़े दीजिए


गाली गुत्था आता ही हो, पद सब भाता ही हो

पैसा चंदा सब कुछ, संत बन लीजिए


कोई गर विरोधी हो, सज्जन भले बोधी हो

बगुला भगत बन, उन्हें रेल दीजिए


बिकास बौखत रहें, ढ़ांचे दरकत रहें

पार्टी दल वाला सर, खेल कर लीजिए


फंसा कर निज पेंच, कर लियो सब केंच

माल मोटा देख कर, मेल कर लीजिए

© सदानन्द कुमार

    समस्तीपुर बिहार

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