पूस प्रवास भाग 11 | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel

पूस प्रवास भाग 11 | Hindi Kahani | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel |

"आजकल कि आधुनिक युवतियां मैटर डील करने से पहले मैटर को अच्छे से समझने में विश्वास करतीं हैं। एकबार जब मैटर उनके समझ में आ जाए फिर तो "मैटर का मै और टर" अलग-अलग करने में वे देर नहीं लगातीं।" Short hindi story || Hindi Kahani || हिंदी कहानियां || प्रेम कहानी || हिंदी उपन्यास ||


पूस प्रवास भाग 11 

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वैसे तो चाय हर मौसम में भारतीय लोगों के लिए जीवनदायी पेय है, पर हाड़ कंपा देने वाली ठंडी शाम के सफर में यदि अमृत रूपी चाय मिल जाए तो फिर क्या बात है, पर ऐसी ठंडी परिस्थिति में भी गुची जी को चाय की तलब बिल्कुल न थी। गुची जी ने सामने से प्रस्तावित चाय को मना कर दिया था। ट्रेन से नीचे उतर कर चाय पीते हुए चाचा जी को साफ-साफ समझ आ रहा था कि गूची जी की मनोदशा क्या है क्योंकि हमारे समाज में सामान्य रूप से सुखी मनोदशा वाला व्यक्ति चाय को कभी मना कर ही नहीं सकता और वैसे भी अकेले चाय पीने में वो आनन्द नहीं है जो किसी के साथ चकलल्स करते हुए चाय पीने में है।

इस स्टेशन पर ट्रेन का स्टॉपेज लगभग आधे घंटे का था इसीलिए चाचा जी इत्मीनान से चाय की चुस्कियां ले रहे थे, पर चाय की चुस्कियां में वह गनगनाहट महसूस नहीं हो रही थी सो उन्होंने मन बना लिया कि इस बार वह गुची को जबरदस्ती ट्रेन से उतारकर खींच ले आएंगे।

वो ऐसा सोचकर चाय के स्टाल से पीछे मुड़े ही थे कि उन्होंने ठीक अपने पीछे उस मृगनयनी बाला को खड़ा पाया जो शायद काॅफी की तलब में ट्रेन से उतरी थी। उस बाला को देखकर चाचा जी के चेहरे पर विस्मय आश्चर्य और खुशी के भाव सभी एक साथ झलक गए। क्षण भर के लिए तो उनको यह समझ में ही नहीं आया कि वो बोले तो बोले क्या और करें तो करें क्या, फिर उन्हें लगा कि खुद कुछ बोलने से अच्छा है कि गूची को इसकी सूचना दे सो वो भीड़ को चीरते हुए गूची की तरफ भागे

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उनको ऐसे बदहवासी में भागता देख लड़की ने मन ही मन सोचा कि ये बुढ़ऊ को क्या हुआ, मुझे देखकर ये भागे क्यूं ? 

इधर किसी तरह भीड़ को चीरते हुए चच्चा गूची के सीट बर्थ की खिड़की पर आकर बाहर से ही खिड़की का शीशा पीटने लगे, क्षण भर के लिए गूची को तो कुछ समझ ही नही आया। मन ही मन उसने भी यही सोचा कि अब फिर से इस बुढ़ऊ को क्या हुआ, ठंड के कारण ट्रेन की सभी खिड़कियों के शीशे बंद थे, हड़बड़ाहट में जैसे तैसे गूची ने खिड़की का शीशा ऊपर उठाया,

शीशा उठाते ही चच्चा जी लगभग चिल्ला उठे, " वो लड़की वहां चाय के स्टाल पर खड़ी है, जल्दी चलो !! "

गूची जी तो यह सुनकर शंट हो गए, खिड़की के जगंलो में खोपड़ी सटाकर कन्खियों से ही देखने लगे कि पहले खुद देखकर आश्वस्त हो लें, इतने में चच्चा जी फिर चिल्लाएं, "अबे! चलों जल्दी !! " 

गूची जी "हां हां " करते हुए मुंडी हिलाते हुए दौड़े।

आनन फानन में दौड़ते हुए दोनों चाय के स्टाल पर पहुंचे। स्टाल पर पहुंचते ही गूची जी ने देखा कि सच में वह लड़की तो यहीं है। उस लड़की को देखकर गूची जी के मन में एक सुखद भाव उतर आया, यह खुशी उनको अपना सूटकेस मिलने की उम्मीद में महसूस नहीं हो रही थी बल्कि यह खुशी बस इसलिए थी कि फिर से यह मृगनयनी सुंदरी उनके आंखों के सामने थी। गूची जी तो खड़े खड़े मानों कोई स्वप्न देख रहे हो। हाय! यह खुबसूरत बाला नरम ऊनी पिंक स्वेटर में लिपटी हुई गरम काॅफी पीती हुई कित्ती क्यूट लग रही है, गूची जी तो खड़े खड़े ना जाने किस स्वप्न लोक की सैर कर रहे थे, इस क्षण तो उनको अपना सूटकेस याद भी नहीं। लड़की को गर्म काॅफी पीता हुआ देखकर गूची जी को भी मानों हीटर की हल्की-हल्की गरमाहट फील हो रही थी।

गूची जी अभी इस सुखद परिदृश्य को महसूस कर ही रहें थे कि बगल में खड़े चच्चा चिल्ला पड़े " ऐ लड़की !! इस लड़के का सूटकेस कहां है। "

चच्चा जी की इस कर्कश आवाज़ ने गूची जी के सुखद स्वपन्न के चिथड़े फाड़ डाले, हड़बड़ाहट में गूची जी हां, ना, हां, ना, के द्वदं में फंसे कुछ बोल पाने की स्थिति में थे नहीं।

इधर चच्चा जी ने दुबारा चीत्कार मचाई " ऐ लड़की!! बोलती क्यूं नहीं इस लड़के का सूटकेस कहां है?"

अभी तक तो इत्मीनान से अपने काॅफी पर फोकस करती हुई लड़की को समझ में ही नहीं आया कि ये सब हो क्या रहा है। 

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वैसे आधुनिक युग की युवतियों को ईश्वर ने एक बहुत ही बेस्ट टैलेंट से नवाजा है। आजकल कि आधुनिक युवतियां मैटर डील करने से पहले मैटर को अच्छे से समझने में विश्वास करतीं हैं। एकबार जब मैटर उनके समझ में आ जाए फिर तो "मैटर का मै और टर" अलग-अलग करने में वे देर नहीं लगातीं।

चचा जी के लगातार मै मै टर टर करने से वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी थी, इधर अब लड़की को भी यह समझ आ गया था कि ये दोनों अपने सूटकेस के लिए परेशान हैं पर मूल बात उसे यह नहीं समझ आ रही थी कि उसके सूटकेस से मेरा क्या लेना-देना है, ये लोग मुझसे क्यूं अपना सूटकेस मांग रहे हैं। मन में यहीं सब उधेड़बुन लिए लड़की पहले तो सहमी हुई चुपचाप खड़ी रही।

लड़की को चुपचाप खड़ा देख चच्चा थोड़ा और चिड़चिड़ा गए। फिर से एक उत्तेजित और कर्कश आवाज़ में चिचिया उठे कि "ऐ लड़की !! बताती है कि नहीं कि सूटकेस कहां है?"

आसपास इकठ्ठी भीड़ के संदेहास्पद नजरें और इस तमाशे से  लड़की के सब्र का बांध भी टूट गया।

लड़की ने भी लगभग चिल्लाते हुए कहा, "इसका सूटकेस मैं क्या जानूं क्या हुआ।" 

यह सुनते ही चच्चा जी के भेजे में मानों एक ज्वालामुखी फूट गया, वे फिर से चिल्लाएं " झूठ बोलती है लड़की, सबने देखा कि कैसे तुमने इस लड़के को दालमूट खिला कर लुढ़काया और फिर इसका सूटकेस लेकर चलती बनीं।"

ये सब सुनकर तो उस कोमल काया का मानों खून ही खौल उठा, पूरे रोष में लाल डबडबाई आंखें लिए वो चिल्लाई कि  "क्या बकता है बुढ़ऊ!! मैं क्या तुझे चोर उचक्की लग रही हूं" 

इतना बोलते बोलते वो गूची की तरफ पलटी और बोली " मैंने कब तुम्हारा सूटकेस उठाया, जो तुम यह सब तमाशा करवा रहे हो।" 

गूची जी ने इतने करीब से उस लड़की की लाल गुस्साई आंखें और उनमें भरें आंसू देखे कि बस देखते ही रह गए, गूची जी मानों सुन्न हो गए, कान खुले थे पर वो लड़की उन्हेें क्या गालियां दे रही है ये सब सूनने में गूची जी के कान असमर्थ थे।

आसपास इकठ्ठी भीड़ तो ऐसे चटकारे ले रही थी मानो खड़े खड़े काला खट्टा गोला चूसने का आनन्द आ रहा हो।

प्लेटफार्म पर ऐसा बिना बात का बवाल होता देख रेलवे पुलिस के कान खड़े हो जाना स्वभाविक था, पुलिस वाले आए और फिर से गालियां देकर भीड़ को भगाया। पुलिस ने सारा मामला सुनने के बाद गूची से कहा " तुम्हरा सूटकेस कहां गायब हुआ है।" 

गूची जी घिघियाते हुए बोले " जी सीट बर्थ के नीचे रखा था पर अब मिल नहीं रहा।" 

"चलों देखते हैं" इतना कहकर पुलिस वाले गूची, चच्चा और लड़की को लेकर वापस गूची के सीट पर आई।

सीट पर आते ही पुलिस ने तफ्तीश शुरू की और हड़काऊ स्वर  में बोला "बताओं कहां रखा था सूटकेस !!" 

गूची जी अपने सीट के नीचे बैठकर बोले "देखिए यहीं रखा था पर अब यहां नहीं है।"

पुलिस वाले ने भी बैठकर सीट के नीचे देखा और बोला " ये बोरी किसकी है। "

गूची जी ने कहा " मुझे पता नहीं सर मैंने तो यहां अपना सूटकेस रखा था पर जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि यहां मेरा सूटकेस नहीं था उसके जगह पर ये बोरी रखी हुई थी। "

इतना सुनने के बाद पुलिस वाले चच्चा जी से मुखातिब हुए "आपने ये बोरी रखते हुए किसी को देखा नहीं। "

चचा जी ने अब शांतचित्त स्वर में कहा "सर हमने तो ध्यान नहीं दिया। "

अब पुलिस वाले ने लड़की से कहा " क्या आपने किसी को यहां बोरी रखते हुए देखा? "

इसपर लड़की ने कहा कि " नहीं !! जबतक मैं यहां बैठी हुई थी तब तक तो कोई नहीं आया था बोरी लेकर। "

इसपर पुलिस वाले ने लंबी सांस ली और सांस छोड़ते ही चिल्लाया " अबे !! ये बोरी किस गद्हे ने यहां ठूंस रखी है।.... जल्दी बोल नहीं तो अभी निकाल कर फेंक दूंगा इसको ट्रेन से बाहर। "

इतना सूनते ही दो तीन सीट बाद से एक गरीब मज़दूर महिला निकल कर आई और कहा "क्या हुआ साहब ये बोरी मेरी ही है।"

पुलिस वाले ने चेहरे की भाव भंगिमा और तीक्ष्ण करते हुए कहा " क्या है इसमें? "

गरीब मज़दूर महिला बेचारी डरते डरते बोली " सब्जियां है साहब इनमें। बस दो स्टेशन बाद उतार लूंगी। "

पुलिस वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, वे जानते थे कि ये किसान लोग है और इनका रोज़ का आना जाना है पर मूल मुद्दे की बात तो यह थी कि सूटकेस कहां है, इसीलिए पुलिस वाला फिर बिफर पड़ा 

" इस लड़के का सूटकेस कहां है, तुमने इसका सूटकेस हटा कर यहां अपनी बोरी ठूंस दी, इसका सूटकेस क्या किया।"

इतना सूनकर तो बेचारी गरीब मजदूर महिला हड़बड़ा कर बोली " मैंने कोई सूटकेस नहीं हटाया इनका सामान यहीं होगा।" 

इतना कहकर वो झुककर अपनी बोरी हटाने लगी जैसे ही बोरी हटी, बोरी के पीछे से गूची का सूटकेस प्रकट हो गया। 

गरीब मजदूर महिला सूटकेस बाहर खींचती हुई बोली " यही सूटकेस है क्या? "

सूटकेस देखते ही गूची और वो मृगनयनी लड़की दोनों एकसाथ चिल्लाएं। 

गूची ने कहा कि " सूटकेस यहीं है मेरा"

और लड़की ने चिल्लाकर कहा " देखा सूटकेस यहीं है !! " और इतना कहकर लड़की ने ऐसा आपा खोया कि पुलिस वाले भी पलभर के लिए कोने में हो गए और लड़की का तांडव देखने लगे।

मन भर मनहरण गालियां देने के बाद उस लड़की ने गूची का सूटकेस उठाकर चच्चा की छाती पर ही दे मारा। 

चच्चा जी तो छाती पकड़ कर वहीं बैठ गए। गूची जी ने भी तुरंत अपना सूटकेस पकड़ लिया ताकि फिर से ये सूटकेस कहीं उनके माथे पर बम बनकर ना गिर पड़े।

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यह सब तांडव देखने के बाद आसपास के सभी यात्री सकपका गए। वो मजदूर महिला ने भी यही सोचकर अपनी बोरी हटा ली कि कहीं उसकी बोरी को भी फुटबॉल ना बना दिया जाए।

मामला उग्र होता देख पुलिस वालों ने किसी तरह समझा बूझा कर लड़की को शांत किया और वापस उसे अपने सीट पर ले गए, पर हां जाते जाते गूची को यह नसीहत जरूर देते गए कि किसी भी बात का बतंगड़ बनाने से पहले उसे अपनी सीट के नीचे ठीक से देख लेना चाहिए था।

क्रमशः,,

अगला भाग जल्दी ही, कृपया हमसे जुड़ें रहें।

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