हर बार पूछती हो "कैसे हो" || Hindi love letters || Hindi love story || Hindi Kahani ||

|| Hindi love letters || Hindi love stories ||हर बार पूछती हो "कैसे हो" 

Classic love story || Romantic love story ||

हर बार पूछती हो "कैसे हो" 

बम्बई

13 मई 1983

” स्वरा ”

पिछले मंगल को चिट्ठी मिली थी तुम्हारी पर जवाब अब दे रहा हूं लिहाजा मेरा जवाबी खत़ भी तुम्हे देर से ही मिलेगा,

देर होता देख, तुम्हारा संतोषी मन तुम्हे ये ढ़ाढ़स बंधाने लगेगा की शायद काम धंधे मे काफी व्यस्त होगा, पर ऐसा नही है,

मेरे पास व्यस्तता के नाम पर फिलहाल इतना ही है की सवेरे सारी डिग्रीयो को समेट कर मैं हर दफ्तर मे याचक की भांति अपने काबिल होने का प्रूफ और नौकर बनने की अर्जी जमा कराता फिरता हूं,

तुम्हे देर से जवाब देने का कारण कुछ और भी है, तुम्हे पता है की तुमसे हर बार हर बात मै बिना किसी पूर्वाग्रह के कह देता हूं, और इसकी आजादी भी तुमने ही मुझे दी है, तुम अपने उम्र और परिवेश से ज्यादा परिपक्व जो ठहरी ,

युवतियो के लिए दमघोंटू अभिशप्त समाज मे चिट्ठी लिख कर पोस्ट करने मे जितनी मशक्कत तुमको करनी पड़ती होगी, मन के अंर्तद्वंद के कारण उतनी ही मशक्कत मेरे हिस्से भी है ,

तुम्हे जवाबी खत़ लिखने मे मुझे भी कई अंर्तद्वंद से पीछा छुड़ाना पड़ता है,

हर बार पूछती हो ” कैसे हो ”

तुम्हारे किसी सवाल के जवाब मे मुझसे झूठ बोला नही जाता,

और सच बोल कर मै खुद को कमजोर पेश नही करना चाहता

तुम जो कहती थी मुझे की “बहुत जूझारू हो तुम” मेरे लिए वो एक कमाई हुई दौलत है

बहुत एहतियात से तुमको जवाबी खत़ लिखता हूं की खत़ का भाव क्या रखूं की तुम वैसी ही मेरे जूझारूपन पर नाज़ करती रहो बस यही मन बनाते हुए जवाबी खत़ लिखने मे देर हो जाती है

जितना तुमको जान गया हूं उस हिसाब से मुझे मालूम है की तुम चिढ़ कर यही कहोगी की इतनी दिक्कत है तो मत दो जवाब ,, मै भी खत़ नही लिखती ,,

पर सूनो खत़ लिखना बंद मत कर देना , मेरे पास यहां बेहिसाब अकेलापन है, शहर की हर सुबह ये एहसास दे कर उठाती है की तुम दूर हो मुझसे,

दोपहर भी ऐसी ही कट जाती है , शहर की भीड़ भी बियांबान सी होती है , एक सूकून बस इतना है की रात को मेरे कमरे की खिड़कियो से चांदनी रौशनी आती है और लेटे लेटे आसमान और तारे साफ दिखते है,

लेटे हुए मै अपने कल का सारा रूटीन सोच लेता हूं , और तुम्हारा आज का दिन कैसा बीता होगा ये कल्पना भी सजीव हो उठती है ,

मन वही छोड़ कर आ गया हूं मै तुम्हारे पास , अपने गली अपने गावं मे, एक तुम्हारे लफ्ज ही है जो सांसे देते है हर बार जब भी पढ़ता हूं इनको , दूरूस्त रहूं इसलिए खत़ देती रहना,

अंत में तुम्हारे सवाल का जवाब – मैं ठीक हूं , हिम्मत नहीं हारी है , अभी जीत बाकी है, तुमको जीत लेना अभी बाकी है |

कुशल रहो हमेशा

” मलय ”

क्रमशः,,,

सदानन्द कुमार 

Hindi Kahani || Hindi Story || Hindi love story ||

अगला भाग जल्दी ही हमसे जुड़ें रहें,,,

टिप्पणियाँ