पूस प्रवास भाग 07 और 08 || Hindi Kahani || Hindi Story || H

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" पूस प्रवास " भाग-07
( सफरनामा )
बुजुर्ग की कही एक एक बात गूची जी की चेतना को लगभग मूर्छित किए जा रही थी। गूची को इतनी देर में ऐसा एकतरफा यकीन तो हो ही गया था कि इस सफर के खत्म होते होते वो कम से कम उस लड़की से समान्य मित्रता और उसके फेसबुक और इंस्टाग्राम के फ्रेंड लिस्ट में अपनी जगह तो बना ही लेगा पर वो लड़की बिना किसी विदा संदेश के ऐसे चुपचाप उतर कर अपने गंतव्य को चली जाएगी ऐसा गूची को बिल्कुल आभास नहीं था । गूची को इस वक्त अपने आप पर इतनी कोफ्त हो रही थी कि उस मृगनयनी के जाते वक्त उसकी आंख क्यू ना खुली, संताप के मारे गूची तो खुद को आजीवन कुंवारेपन का श्राप देते देते रह गया, लेकिन खैर, गूची जी ने खुद को कोसते हुए अपना मन कड़ा कर लेना ही उचित समझा और किसी हारे हुए योद्धा की तरह सीट पर धप्प से बैठ पड़े। विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि उसके तरफ से इतने आत्मीयता के बावजूद उस लड़की ने उसे एक अजनबी से बढकर कुछ ना समझा । अचानक गूची को याद आया कि लड़की तो कह रही थी कि कन्फर्म सीट के लिए टीटी से बात कर कुछ ऐरेंजमेंट कर लूंगी, कहीं ऐसा तो नहीं कि टीटी ने उसे कन्फर्म सीट दे दी हो और वो उस सीट पर शिफ्ट कर गई हो, ऐसा सोचते ही गूची जी के दिल में उम्मीद की एक डिभरी जल पड़ी । गूची जी सोचने लगे अभी पूरे ट्रेन में खोज मारता हूं मिल जाए तो बस सामान्य शिष्टाचार के साथ आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं देकर वापस अपनी सीट पर चला आऊंगा और कम से कम ये जरूर बता दूंगा कि ऐसे बिना विदा कहे चले आने से मन अधर में रह जाता है और अगर लड़की ने सहज भाव से बात की तो कम से कम अपनी इंस्टा आई डी जरूर बताता आऊंगा, किसी ने सच ही कहा है कि पुरूषों का दिल जब घास चरने लगे तो महिला के नजर में वह बस गद्हा बन कर ही रह जाता है 🥴 पर गूची जी मन ही मन ना जाने कितने मोतीचूर के लड्डू फोड़ चुके थे, और बड़े उत्साहित होकर अपने सीट से खड़े हुए कि अब तो पूरी ट्रेन को छान मारना है । जैसे ही सीट के नीचे अपने जूते निकालने के लिए गूची जी झुके तो सीट के नीचे उन्हें एक भारी सी बोरी देखकर कुछ अटपटा सा लगा फिर अचानक उन्हें याद आया कि ससुरा हमने तो यहां अपना ट्राली सूटकेस रखा था, बोरी देखकर सहसा गूची के अंतर्रात्मा से आवाज आई कि " हाय दद्दा !! हमारा सूटकेस कहां है । " 
क्रमशः ,,,

पूस प्रवास भाग 08 || Hindi Kahani || Hindi Story || 

" पूस प्रवास " भाग- 08 
( सफरनामा )
अपने सूटकेस को निर्धारित जगह ना देखकर गूची जी की तो हवाइयां उड़ने लग गई, आनन फानन में आस पास कि सीट के नीचे किसी मूषक की भांति दंडवत लंबवत होकर देख डाला पर सूटकेस मिला नहीं । चेहरे पर भंयकर आशंकित भाव लिए गूची जी बुजुर्ग दंपति के तरफ पलटें और बड़ी व्याकुलता के साथ अपने सूटकेस की खोज लेनी चाही, " आपने मेरा सूटकेस देखा क्या, यहीं तो रखा था, अभी दिख नहीं रहा । "
बुजुर्ग ने गूची कि इस बात पर कोई विशेष उत्तेजना नहीं दिखाई और बड़े इत्मीनान से बोले-" लो !! गया सूटकेस !! और खाओ बेटा दालमूट, तभी मैं सोचूं कि लड़की तुम्हारे आंख लगते ही क्यूं घसक रहीं हैं ? " 
इस वक़्त गूची जी के दिलो-दिमाग में बस अपना सूटकेस घूम रहा था, बुजुर्ग के द्वारा कसा गया तंज उसे छू तक ना पाया, गूची जी अब बड़े दयनीय भाव भंगिमा के साथ बोले- " क्या आपने उस लड़की को मेरा सूटकेश ले जाते हुए देखा ? "
बुजुर्ग ने अब अपनी आवाज़ में थोड़ी तल्खी लाते हुए कहा- " अब सूटकेस तो उसके पास कई थे, कौन जाने कि वो तुम्हारा ही सूटकेस था । " गूची जी को अब आगे पीछे कुछ नहीं सूझ रहा था । कहां वो अभी चलते ट्रेन में किसी भ्रमर की भांति कली की तलाश में निकलने वाले थे और कहां अभी खुद अपना ही टीन टप्पर उजड़ गया है । घड़ी घड़ी गूची जी को उस बैग में ढूंसे हुए अपने सामान की याद आ रही थी । उस मृगनयनी के सम्मोहन में दिमाग अब इतना भोत्थर हो गया था कि ठीक से याद भी नहीं आ पा रहा था कि सूटकेस में क्या क्या जरूरी चीजें रखी थी । गूची जी को सूटकेस विहीन होने पर ऐसा सदमा लगा कि बार बार कानों में " तेरे नाम " फिल्म का मशहूर गाना गूंजता हुआ मालूम होता था " क्यूं , किसी को वफ़ा के बदले वफ़ा नहीं मिलती, 🎶🎵 क्यू, किसी को ख़ुशी के बदले ख़ुशी नहीं मिलती 🎶 ये प्यार में क्यू होता है,, ये प्यार में क्यू होता है,,
क्रमशः,,
सदानन्द कुमार

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