पूस प्रवास भाग 3 और भाग 4

" पूस प्रवास " भाग-03

 ( सफरनामा )
यूं तो हम भारतीय लोगों के लिए रेल का सफर महज दो स्थानों के बीच की दूरी तय करने भर की बात नहीं होती । हमारे लिए रेल की यात्रा हर बार एक संस्मरण की जननी होती है, लेकिन जब मन किसी गंभीर चिंतन मनन में लीन हो तब हर सुखद परिस्थिति आनन्द दे ये जरूरी नहीं । हमारे गूची भाई भी किसी तरह रेल मे सवार हो तो गए लेकिन उनका मन अब भी नौकरी और जीवन में ज्ञान के असली निहितार्थ के बीच में झूल रहा था । किसी तरह मन को तात्कालिक विश्राम देकर गूची जी ठसाठस भरें कोच में धीरे धीरे कछुए के माफिक अपना दो सूटकेस लिए अपने सीट के तरफ बढ़े, अपने सीट पर आकर गूची जी ने जैसे ही अपना सूटकेस अपने बर्थ पर टिकाया कि पास खड़ी कोमल काया , आधुनिक मेकअप से सुसज्जित और मनहर ऐटिट्यूड वाली नवयुवती धीरे से गूची जी के सीट पर कोने में सरक कर बैठ गई, वैसे तो अगर इस कोमल काया लड़की के जगह कोई हालात का मारा पुरुष गूची के सीट पर बैठता तो गूची जी इसे अपने अधिकारों का हनन और सीट पर नाजायज अतिक्रमण समझते पर बात यहां कोमल काया मृगनयनी की थी तो मजाल है कि गूची जी के मुख से आपत्ति का आ भी निकल जाए । गूची तो मन ही मन सोच रहे थे कि ससुरा जीवन इतना भी नीरस नहीं जितना वो अभी समझ रहा था, बैठने को तो यह लड़की बगल की सीट पर भी बैठ सकती थी पर मेरे ही सानिध्य में बैठना शायद किसी सुखद परिणीती की सूचक हैं । 
बड़ी ही झिझक से गूची जी ने दांत निपोरे एक बड़ा विनम्र सवाल इस नवयौवना की तरफ दागा- " जी, वो आपकी सीट कौन सी है ? " 
तरूणी ने भी बड़ी आत्मीयता के साथ कहा कि " जी फिलहाल तो मेरी सीट कन्फर्म नहीं है, वेटिंग है, आप बहुत सभ्य और सौम्य लगे इसलिए मैं यहां बैठने का साहस कर पाई । आपको अगर तकलीफ़ ना हो तो क्या मैं यहां थोड़ी देर बैठ जाऊं, टीटी के आते ही मैं कुछ एरेजमेंट कर लूंगी । " 
गूची जी ने इस कन्या के मुख से संपादिक वाक्यों में बस इतना ही सूना कि "आप मुझे बहुत सभ्य और सौम्य लगें, बस इतना ही सूना कि गूची जी के मन में इतना बड़ा लड्डू फूटा कि उसके धमाके में गूची जी ने आगे कुछ सूना ही नहीं, बस भाव विभोर होकर मुण्डी डोलाते रह गए ।
क्रमशः,,,

                      " पूस प्रवास " भाग-04
                              ( सफरनामा )
यूं तो स्त्री पुरुष में आकर्षण के कई आयाम हो सकतें हैं परंतु मानव गुण धर्म पर पीएचडी ढोक चुके स्काॅलरस का ऐसा मानना है कि हास्य विनोद में पारंगत पुरुष, स्त्रियों को, और रूपवती स्त्रियां, पुरुषों को स्वाभिक रूप से आकर्षित करते हैं । हमारे गूची जी भी ऐसे ही रूपवती सहयात्री के सहयोग की कामना करते हुए सफ़र को एन्ज्वाय करते चले जा रहे थे परन्तु वार्तालाप शुरू करने में गूची जी सहजता महसूस नहीं कर पा रहे थे । शायद गूची जी कि इसी असहजता को महसूस करते हुए  नवयौवना ने स्वयं ही संवाद शुरू किया और बड़े ही सौम्य लहज़े में पूछा-" आपने बताया नहीं कि आपको कोई तकलीफ़ तो नहीं अगर मैं यहां थोड़ी देर बैठ जाऊं ।"
गूची जी लगभग घिघयाते हुए बोले-" नहीं नहीं मुझे कोई तकलीफ़ नहीं, आप आराम से बैठे ।" 
इतना कहते हुए गूची जी ने एक प्रशन भी साथ साथ चिपका दिया " क्या आप अकेले सफर कर रही हो ।"
अब लड़की ने अपनी मंद मुस्कान के साथ संवाद में मिश्री घोलते हुए कहा- " यस, आई एम टोटली एलोन, बट ईट्स फाईन । " 
गूची ने मानो ऐसी ब्युटीफुल ईग्लिश जीवन में पहली बार देखा था अअ , मेरा मतलब सुना था😜 पर मदहोशी को कंन्ट्रोल करते हुए बोले -" यस, नो ईश्शू , पर आप अकेली क्यूं , वो भी वेटिंग टिकट के साथ, क्या परेशानी नहीं होगी? "
अब तक लड़की गूची जी के वजन को तौल चुकी थी इसलिए तपाक से बोली " जी  आप जैसे सभ्य लोग के होते हुए , उतनी परेशानी नहीं । वैसे भी मैं यहां कलकत्ते से इंजीनियरिंग कर रही हूं, महीने दो महीने में एक बार घर जाती ही रहतीं हूं, हर बार कन्फर्म टिकट तो नहीं मिलता, मुझे आदत है, वैसे भी मात्र छः सात घंटे का ही सफर है । "
शायद लड़की ने एक बार में इतना सब इसलिए कह बताया ताकि गूची जी के तरफ से अब कोई अवांछित प्रशन ना उठे ,,,
क्रमशः,,,
सदानन्द कुमार
सदानन्द कुमार
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