रविवार, 10 मार्च 2024

Romantic Shayari || Break up Shayari || हिन्दी कविता ||

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मौसम था जो फूलो वाला, अफ़सोस कि वो बीत गया
तूने गले लगाया जिसको, शख्स वो मुझसे जीत गया
सोचा था तू समझेगा तो, होगी कोई कमी नहीं
पर वियोग में यह क्या देखा, उन नयनों में नमी नहीं 
सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार

महावीर अशोक बुद्ध कई, नाम गिनो तो आते हैं 
मोती भारत को दिये कई, तिरने पर जब आते हैं
जीवठ हम में जिंदा है, परिवर्तन हम चिंगारी हैं
धीरज शौर्य और साहस का पर्याय हम बिहारी हैं
सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार 

लिखकर प्रेम पत्र जो मैंने,तेरे मन पर छोड़ दिया
ठांव लिखा कागज़ पर तेरा,और पता निज जोड़ दिया
पर खाली पन्ने देना तुम, यदि अनुनय स्वीकार नहीं 
बिन अनुमति के प्रिय तुम्हारे, मेरा कुछ अधिकार नहीं सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार 

हिन्दी कविता Sadanand Kumar

Romantic Shayari for gf




सोमवार, 25 सितंबर 2023

पूस प्रवास भाग 11 | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel

पूस प्रवास भाग 11 | Hindi Kahani | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel |

"आजकल कि आधुनिक युवतियां मैटर डील करने से पहले मैटर को अच्छे से समझने में विश्वास करतीं हैं। एकबार जब मैटर उनके समझ में आ जाए फिर तो "मैटर का मै और टर" अलग-अलग करने में वे देर नहीं लगातीं।" Short hindi story || Hindi Kahani || हिंदी कहानियां || प्रेम कहानी || हिंदी उपन्यास ||


पूस प्रवास भाग 11 

| Hindi Kahani | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel |

वैसे तो चाय हर मौसम में भारतीय लोगों के लिए जीवनदायी पेय है, पर हाड़ कंपा देने वाली ठंडी शाम के सफर में यदि अमृत रूपी चाय मिल जाए तो फिर क्या बात है, पर ऐसी ठंडी परिस्थिति में भी गुची जी को चाय की तलब बिल्कुल न थी। गुची जी ने सामने से प्रस्तावित चाय को मना कर दिया था। ट्रेन से नीचे उतर कर चाय पीते हुए चाचा जी को साफ-साफ समझ आ रहा था कि गूची जी की मनोदशा क्या है क्योंकि हमारे समाज में सामान्य रूप से सुखी मनोदशा वाला व्यक्ति चाय को कभी मना कर ही नहीं सकता और वैसे भी अकेले चाय पीने में वो आनन्द नहीं है जो किसी के साथ चकलल्स करते हुए चाय पीने में है।

इस स्टेशन पर ट्रेन का स्टॉपेज लगभग आधे घंटे का था इसीलिए चाचा जी इत्मीनान से चाय की चुस्कियां ले रहे थे, पर चाय की चुस्कियां में वह गनगनाहट महसूस नहीं हो रही थी सो उन्होंने मन बना लिया कि इस बार वह गुची को जबरदस्ती ट्रेन से उतारकर खींच ले आएंगे।

वो ऐसा सोचकर चाय के स्टाल से पीछे मुड़े ही थे कि उन्होंने ठीक अपने पीछे उस मृगनयनी बाला को खड़ा पाया जो शायद काॅफी की तलब में ट्रेन से उतरी थी। उस बाला को देखकर चाचा जी के चेहरे पर विस्मय आश्चर्य और खुशी के भाव सभी एक साथ झलक गए। क्षण भर के लिए तो उनको यह समझ में ही नहीं आया कि वो बोले तो बोले क्या और करें तो करें क्या, फिर उन्हें लगा कि खुद कुछ बोलने से अच्छा है कि गूची को इसकी सूचना दे सो वो भीड़ को चीरते हुए गूची की तरफ भागे

Hindi Kahani | प्रेम कहानी | Romantic love story hindi | Hindi novel |

उनको ऐसे बदहवासी में भागता देख लड़की ने मन ही मन सोचा कि ये बुढ़ऊ को क्या हुआ, मुझे देखकर ये भागे क्यूं ? 

इधर किसी तरह भीड़ को चीरते हुए चच्चा गूची के सीट बर्थ की खिड़की पर आकर बाहर से ही खिड़की का शीशा पीटने लगे, क्षण भर के लिए गूची को तो कुछ समझ ही नही आया। मन ही मन उसने भी यही सोचा कि अब फिर से इस बुढ़ऊ को क्या हुआ, ठंड के कारण ट्रेन की सभी खिड़कियों के शीशे बंद थे, हड़बड़ाहट में जैसे तैसे गूची ने खिड़की का शीशा ऊपर उठाया,

शीशा उठाते ही चच्चा जी लगभग चिल्ला उठे, " वो लड़की वहां चाय के स्टाल पर खड़ी है, जल्दी चलो !! "

गूची जी तो यह सुनकर शंट हो गए, खिड़की के जगंलो में खोपड़ी सटाकर कन्खियों से ही देखने लगे कि पहले खुद देखकर आश्वस्त हो लें, इतने में चच्चा जी फिर चिल्लाएं, "अबे! चलों जल्दी !! " 

गूची जी "हां हां " करते हुए मुंडी हिलाते हुए दौड़े।

आनन फानन में दौड़ते हुए दोनों चाय के स्टाल पर पहुंचे। स्टाल पर पहुंचते ही गूची जी ने देखा कि सच में वह लड़की तो यहीं है। उस लड़की को देखकर गूची जी के मन में एक सुखद भाव उतर आया, यह खुशी उनको अपना सूटकेस मिलने की उम्मीद में महसूस नहीं हो रही थी बल्कि यह खुशी बस इसलिए थी कि फिर से यह मृगनयनी सुंदरी उनके आंखों के सामने थी। गूची जी तो खड़े खड़े मानों कोई स्वप्न देख रहे हो। हाय! यह खुबसूरत बाला नरम ऊनी पिंक स्वेटर में लिपटी हुई गरम काॅफी पीती हुई कित्ती क्यूट लग रही है, गूची जी तो खड़े खड़े ना जाने किस स्वप्न लोक की सैर कर रहे थे, इस क्षण तो उनको अपना सूटकेस याद भी नहीं। लड़की को गर्म काॅफी पीता हुआ देखकर गूची जी को भी मानों हीटर की हल्की-हल्की गरमाहट फील हो रही थी।

गूची जी अभी इस सुखद परिदृश्य को महसूस कर ही रहें थे कि बगल में खड़े चच्चा चिल्ला पड़े " ऐ लड़की !! इस लड़के का सूटकेस कहां है। "

चच्चा जी की इस कर्कश आवाज़ ने गूची जी के सुखद स्वपन्न के चिथड़े फाड़ डाले, हड़बड़ाहट में गूची जी हां, ना, हां, ना, के द्वदं में फंसे कुछ बोल पाने की स्थिति में थे नहीं।

इधर चच्चा जी ने दुबारा चीत्कार मचाई " ऐ लड़की!! बोलती क्यूं नहीं इस लड़के का सूटकेस कहां है?"

अभी तक तो इत्मीनान से अपने काॅफी पर फोकस करती हुई लड़की को समझ में ही नहीं आया कि ये सब हो क्या रहा है। 

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वैसे आधुनिक युग की युवतियों को ईश्वर ने एक बहुत ही बेस्ट टैलेंट से नवाजा है। आजकल कि आधुनिक युवतियां मैटर डील करने से पहले मैटर को अच्छे से समझने में विश्वास करतीं हैं। एकबार जब मैटर उनके समझ में आ जाए फिर तो "मैटर का मै और टर" अलग-अलग करने में वे देर नहीं लगातीं।

चचा जी के लगातार मै मै टर टर करने से वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी थी, इधर अब लड़की को भी यह समझ आ गया था कि ये दोनों अपने सूटकेस के लिए परेशान हैं पर मूल बात उसे यह नहीं समझ आ रही थी कि उसके सूटकेस से मेरा क्या लेना-देना है, ये लोग मुझसे क्यूं अपना सूटकेस मांग रहे हैं। मन में यहीं सब उधेड़बुन लिए लड़की पहले तो सहमी हुई चुपचाप खड़ी रही।

लड़की को चुपचाप खड़ा देख चच्चा थोड़ा और चिड़चिड़ा गए। फिर से एक उत्तेजित और कर्कश आवाज़ में चिचिया उठे कि "ऐ लड़की !! बताती है कि नहीं कि सूटकेस कहां है?"

आसपास इकठ्ठी भीड़ के संदेहास्पद नजरें और इस तमाशे से  लड़की के सब्र का बांध भी टूट गया।

लड़की ने भी लगभग चिल्लाते हुए कहा, "इसका सूटकेस मैं क्या जानूं क्या हुआ।" 

यह सुनते ही चच्चा जी के भेजे में मानों एक ज्वालामुखी फूट गया, वे फिर से चिल्लाएं " झूठ बोलती है लड़की, सबने देखा कि कैसे तुमने इस लड़के को दालमूट खिला कर लुढ़काया और फिर इसका सूटकेस लेकर चलती बनीं।"

ये सब सुनकर तो उस कोमल काया का मानों खून ही खौल उठा, पूरे रोष में लाल डबडबाई आंखें लिए वो चिल्लाई कि  "क्या बकता है बुढ़ऊ!! मैं क्या तुझे चोर उचक्की लग रही हूं" 

इतना बोलते बोलते वो गूची की तरफ पलटी और बोली " मैंने कब तुम्हारा सूटकेस उठाया, जो तुम यह सब तमाशा करवा रहे हो।" 

गूची जी ने इतने करीब से उस लड़की की लाल गुस्साई आंखें और उनमें भरें आंसू देखे कि बस देखते ही रह गए, गूची जी मानों सुन्न हो गए, कान खुले थे पर वो लड़की उन्हेें क्या गालियां दे रही है ये सब सूनने में गूची जी के कान असमर्थ थे।

आसपास इकठ्ठी भीड़ तो ऐसे चटकारे ले रही थी मानो खड़े खड़े काला खट्टा गोला चूसने का आनन्द आ रहा हो।

प्लेटफार्म पर ऐसा बिना बात का बवाल होता देख रेलवे पुलिस के कान खड़े हो जाना स्वभाविक था, पुलिस वाले आए और फिर से गालियां देकर भीड़ को भगाया। पुलिस ने सारा मामला सुनने के बाद गूची से कहा " तुम्हरा सूटकेस कहां गायब हुआ है।" 

गूची जी घिघियाते हुए बोले " जी सीट बर्थ के नीचे रखा था पर अब मिल नहीं रहा।" 

"चलों देखते हैं" इतना कहकर पुलिस वाले गूची, चच्चा और लड़की को लेकर वापस गूची के सीट पर आई।

सीट पर आते ही पुलिस ने तफ्तीश शुरू की और हड़काऊ स्वर  में बोला "बताओं कहां रखा था सूटकेस !!" 

गूची जी अपने सीट के नीचे बैठकर बोले "देखिए यहीं रखा था पर अब यहां नहीं है।"

पुलिस वाले ने भी बैठकर सीट के नीचे देखा और बोला " ये बोरी किसकी है। "

गूची जी ने कहा " मुझे पता नहीं सर मैंने तो यहां अपना सूटकेस रखा था पर जब मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि यहां मेरा सूटकेस नहीं था उसके जगह पर ये बोरी रखी हुई थी। "

इतना सुनने के बाद पुलिस वाले चच्चा जी से मुखातिब हुए "आपने ये बोरी रखते हुए किसी को देखा नहीं। "

चचा जी ने अब शांतचित्त स्वर में कहा "सर हमने तो ध्यान नहीं दिया। "

अब पुलिस वाले ने लड़की से कहा " क्या आपने किसी को यहां बोरी रखते हुए देखा? "

इसपर लड़की ने कहा कि " नहीं !! जबतक मैं यहां बैठी हुई थी तब तक तो कोई नहीं आया था बोरी लेकर। "

इसपर पुलिस वाले ने लंबी सांस ली और सांस छोड़ते ही चिल्लाया " अबे !! ये बोरी किस गद्हे ने यहां ठूंस रखी है।.... जल्दी बोल नहीं तो अभी निकाल कर फेंक दूंगा इसको ट्रेन से बाहर। "

इतना सूनते ही दो तीन सीट बाद से एक गरीब मज़दूर महिला निकल कर आई और कहा "क्या हुआ साहब ये बोरी मेरी ही है।"

पुलिस वाले ने चेहरे की भाव भंगिमा और तीक्ष्ण करते हुए कहा " क्या है इसमें? "

गरीब मज़दूर महिला बेचारी डरते डरते बोली " सब्जियां है साहब इनमें। बस दो स्टेशन बाद उतार लूंगी। "

पुलिस वालों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, वे जानते थे कि ये किसान लोग है और इनका रोज़ का आना जाना है पर मूल मुद्दे की बात तो यह थी कि सूटकेस कहां है, इसीलिए पुलिस वाला फिर बिफर पड़ा 

" इस लड़के का सूटकेस कहां है, तुमने इसका सूटकेस हटा कर यहां अपनी बोरी ठूंस दी, इसका सूटकेस क्या किया।"

इतना सूनकर तो बेचारी गरीब मजदूर महिला हड़बड़ा कर बोली " मैंने कोई सूटकेस नहीं हटाया इनका सामान यहीं होगा।" 

इतना कहकर वो झुककर अपनी बोरी हटाने लगी जैसे ही बोरी हटी, बोरी के पीछे से गूची का सूटकेस प्रकट हो गया। 

गरीब मजदूर महिला सूटकेस बाहर खींचती हुई बोली " यही सूटकेस है क्या? "

सूटकेस देखते ही गूची और वो मृगनयनी लड़की दोनों एकसाथ चिल्लाएं। 

गूची ने कहा कि " सूटकेस यहीं है मेरा"

और लड़की ने चिल्लाकर कहा " देखा सूटकेस यहीं है !! " और इतना कहकर लड़की ने ऐसा आपा खोया कि पुलिस वाले भी पलभर के लिए कोने में हो गए और लड़की का तांडव देखने लगे।

मन भर मनहरण गालियां देने के बाद उस लड़की ने गूची का सूटकेस उठाकर चच्चा की छाती पर ही दे मारा। 

चच्चा जी तो छाती पकड़ कर वहीं बैठ गए। गूची जी ने भी तुरंत अपना सूटकेस पकड़ लिया ताकि फिर से ये सूटकेस कहीं उनके माथे पर बम बनकर ना गिर पड़े।

Short hindi story || Romantic love story Hindi || Hindi novel || प्रेम कहानी ||

यह सब तांडव देखने के बाद आसपास के सभी यात्री सकपका गए। वो मजदूर महिला ने भी यही सोचकर अपनी बोरी हटा ली कि कहीं उसकी बोरी को भी फुटबॉल ना बना दिया जाए।

मामला उग्र होता देख पुलिस वालों ने किसी तरह समझा बूझा कर लड़की को शांत किया और वापस उसे अपने सीट पर ले गए, पर हां जाते जाते गूची को यह नसीहत जरूर देते गए कि किसी भी बात का बतंगड़ बनाने से पहले उसे अपनी सीट के नीचे ठीक से देख लेना चाहिए था।

क्रमशः,,

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रविवार, 17 सितंबर 2023

हर बार पूछती हो "कैसे हो" || Hindi love letters || Hindi love story || Hindi Kahani ||

|| Hindi love letters || Hindi love stories ||हर बार पूछती हो "कैसे हो" 

Classic love story || Romantic love story ||

हर बार पूछती हो "कैसे हो" 

बम्बई

13 मई 1983

” स्वरा ”

पिछले मंगल को चिट्ठी मिली थी तुम्हारी पर जवाब अब दे रहा हूं लिहाजा मेरा जवाबी खत़ भी तुम्हे देर से ही मिलेगा,

देर होता देख, तुम्हारा संतोषी मन तुम्हे ये ढ़ाढ़स बंधाने लगेगा की शायद काम धंधे मे काफी व्यस्त होगा, पर ऐसा नही है,

मेरे पास व्यस्तता के नाम पर फिलहाल इतना ही है की सवेरे सारी डिग्रीयो को समेट कर मैं हर दफ्तर मे याचक की भांति अपने काबिल होने का प्रूफ और नौकर बनने की अर्जी जमा कराता फिरता हूं,

तुम्हे देर से जवाब देने का कारण कुछ और भी है, तुम्हे पता है की तुमसे हर बार हर बात मै बिना किसी पूर्वाग्रह के कह देता हूं, और इसकी आजादी भी तुमने ही मुझे दी है, तुम अपने उम्र और परिवेश से ज्यादा परिपक्व जो ठहरी ,

युवतियो के लिए दमघोंटू अभिशप्त समाज मे चिट्ठी लिख कर पोस्ट करने मे जितनी मशक्कत तुमको करनी पड़ती होगी, मन के अंर्तद्वंद के कारण उतनी ही मशक्कत मेरे हिस्से भी है ,

तुम्हे जवाबी खत़ लिखने मे मुझे भी कई अंर्तद्वंद से पीछा छुड़ाना पड़ता है,

हर बार पूछती हो ” कैसे हो ”

तुम्हारे किसी सवाल के जवाब मे मुझसे झूठ बोला नही जाता,

और सच बोल कर मै खुद को कमजोर पेश नही करना चाहता

तुम जो कहती थी मुझे की “बहुत जूझारू हो तुम” मेरे लिए वो एक कमाई हुई दौलत है

बहुत एहतियात से तुमको जवाबी खत़ लिखता हूं की खत़ का भाव क्या रखूं की तुम वैसी ही मेरे जूझारूपन पर नाज़ करती रहो बस यही मन बनाते हुए जवाबी खत़ लिखने मे देर हो जाती है

जितना तुमको जान गया हूं उस हिसाब से मुझे मालूम है की तुम चिढ़ कर यही कहोगी की इतनी दिक्कत है तो मत दो जवाब ,, मै भी खत़ नही लिखती ,,

पर सूनो खत़ लिखना बंद मत कर देना , मेरे पास यहां बेहिसाब अकेलापन है, शहर की हर सुबह ये एहसास दे कर उठाती है की तुम दूर हो मुझसे,

दोपहर भी ऐसी ही कट जाती है , शहर की भीड़ भी बियांबान सी होती है , एक सूकून बस इतना है की रात को मेरे कमरे की खिड़कियो से चांदनी रौशनी आती है और लेटे लेटे आसमान और तारे साफ दिखते है,

लेटे हुए मै अपने कल का सारा रूटीन सोच लेता हूं , और तुम्हारा आज का दिन कैसा बीता होगा ये कल्पना भी सजीव हो उठती है ,

मन वही छोड़ कर आ गया हूं मै तुम्हारे पास , अपने गली अपने गावं मे, एक तुम्हारे लफ्ज ही है जो सांसे देते है हर बार जब भी पढ़ता हूं इनको , दूरूस्त रहूं इसलिए खत़ देती रहना,

अंत में तुम्हारे सवाल का जवाब – मैं ठीक हूं , हिम्मत नहीं हारी है , अभी जीत बाकी है, तुमको जीत लेना अभी बाकी है |

कुशल रहो हमेशा

” मलय ”

क्रमशः,,,

सदानन्द कुमार 

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पूस प्रवास भाग 07 और 08 || Hindi Kahani || Hindi Story || H

नमस्कार दोस्तों,  Hindi Kahani || Hindi Story || पूस प्रवास भाग 07 और 08 में आपका स्वागत है।

" पूस प्रवास " भाग-07
( सफरनामा )
बुजुर्ग की कही एक एक बात गूची जी की चेतना को लगभग मूर्छित किए जा रही थी। गूची को इतनी देर में ऐसा एकतरफा यकीन तो हो ही गया था कि इस सफर के खत्म होते होते वो कम से कम उस लड़की से समान्य मित्रता और उसके फेसबुक और इंस्टाग्राम के फ्रेंड लिस्ट में अपनी जगह तो बना ही लेगा पर वो लड़की बिना किसी विदा संदेश के ऐसे चुपचाप उतर कर अपने गंतव्य को चली जाएगी ऐसा गूची को बिल्कुल आभास नहीं था । गूची को इस वक्त अपने आप पर इतनी कोफ्त हो रही थी कि उस मृगनयनी के जाते वक्त उसकी आंख क्यू ना खुली, संताप के मारे गूची तो खुद को आजीवन कुंवारेपन का श्राप देते देते रह गया, लेकिन खैर, गूची जी ने खुद को कोसते हुए अपना मन कड़ा कर लेना ही उचित समझा और किसी हारे हुए योद्धा की तरह सीट पर धप्प से बैठ पड़े। विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि उसके तरफ से इतने आत्मीयता के बावजूद उस लड़की ने उसे एक अजनबी से बढकर कुछ ना समझा । अचानक गूची को याद आया कि लड़की तो कह रही थी कि कन्फर्म सीट के लिए टीटी से बात कर कुछ ऐरेंजमेंट कर लूंगी, कहीं ऐसा तो नहीं कि टीटी ने उसे कन्फर्म सीट दे दी हो और वो उस सीट पर शिफ्ट कर गई हो, ऐसा सोचते ही गूची जी के दिल में उम्मीद की एक डिभरी जल पड़ी । गूची जी सोचने लगे अभी पूरे ट्रेन में खोज मारता हूं मिल जाए तो बस सामान्य शिष्टाचार के साथ आगे की यात्रा के लिए शुभकामनाएं देकर वापस अपनी सीट पर चला आऊंगा और कम से कम ये जरूर बता दूंगा कि ऐसे बिना विदा कहे चले आने से मन अधर में रह जाता है और अगर लड़की ने सहज भाव से बात की तो कम से कम अपनी इंस्टा आई डी जरूर बताता आऊंगा, किसी ने सच ही कहा है कि पुरूषों का दिल जब घास चरने लगे तो महिला के नजर में वह बस गद्हा बन कर ही रह जाता है 🥴 पर गूची जी मन ही मन ना जाने कितने मोतीचूर के लड्डू फोड़ चुके थे, और बड़े उत्साहित होकर अपने सीट से खड़े हुए कि अब तो पूरी ट्रेन को छान मारना है । जैसे ही सीट के नीचे अपने जूते निकालने के लिए गूची जी झुके तो सीट के नीचे उन्हें एक भारी सी बोरी देखकर कुछ अटपटा सा लगा फिर अचानक उन्हें याद आया कि ससुरा हमने तो यहां अपना ट्राली सूटकेस रखा था, बोरी देखकर सहसा गूची के अंतर्रात्मा से आवाज आई कि " हाय दद्दा !! हमारा सूटकेस कहां है । " 
क्रमशः ,,,

पूस प्रवास भाग 08 || Hindi Kahani || Hindi Story || 

" पूस प्रवास " भाग- 08 
( सफरनामा )
अपने सूटकेस को निर्धारित जगह ना देखकर गूची जी की तो हवाइयां उड़ने लग गई, आनन फानन में आस पास कि सीट के नीचे किसी मूषक की भांति दंडवत लंबवत होकर देख डाला पर सूटकेस मिला नहीं । चेहरे पर भंयकर आशंकित भाव लिए गूची जी बुजुर्ग दंपति के तरफ पलटें और बड़ी व्याकुलता के साथ अपने सूटकेस की खोज लेनी चाही, " आपने मेरा सूटकेस देखा क्या, यहीं तो रखा था, अभी दिख नहीं रहा । "
बुजुर्ग ने गूची कि इस बात पर कोई विशेष उत्तेजना नहीं दिखाई और बड़े इत्मीनान से बोले-" लो !! गया सूटकेस !! और खाओ बेटा दालमूट, तभी मैं सोचूं कि लड़की तुम्हारे आंख लगते ही क्यूं घसक रहीं हैं ? " 
इस वक़्त गूची जी के दिलो-दिमाग में बस अपना सूटकेस घूम रहा था, बुजुर्ग के द्वारा कसा गया तंज उसे छू तक ना पाया, गूची जी अब बड़े दयनीय भाव भंगिमा के साथ बोले- " क्या आपने उस लड़की को मेरा सूटकेश ले जाते हुए देखा ? "
बुजुर्ग ने अब अपनी आवाज़ में थोड़ी तल्खी लाते हुए कहा- " अब सूटकेस तो उसके पास कई थे, कौन जाने कि वो तुम्हारा ही सूटकेस था । " गूची जी को अब आगे पीछे कुछ नहीं सूझ रहा था । कहां वो अभी चलते ट्रेन में किसी भ्रमर की भांति कली की तलाश में निकलने वाले थे और कहां अभी खुद अपना ही टीन टप्पर उजड़ गया है । घड़ी घड़ी गूची जी को उस बैग में ढूंसे हुए अपने सामान की याद आ रही थी । उस मृगनयनी के सम्मोहन में दिमाग अब इतना भोत्थर हो गया था कि ठीक से याद भी नहीं आ पा रहा था कि सूटकेस में क्या क्या जरूरी चीजें रखी थी । गूची जी को सूटकेस विहीन होने पर ऐसा सदमा लगा कि बार बार कानों में " तेरे नाम " फिल्म का मशहूर गाना गूंजता हुआ मालूम होता था " क्यूं , किसी को वफ़ा के बदले वफ़ा नहीं मिलती, 🎶🎵 क्यू, किसी को ख़ुशी के बदले ख़ुशी नहीं मिलती 🎶 ये प्यार में क्यू होता है,, ये प्यार में क्यू होता है,,
क्रमशः,,
सदानन्द कुमार

अगला भाग

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

हिन्दी दिवस पर कविता || हिन्दी दिवस पर शायरी || " हिन्दी माई "

हिन्दी दिवस पर कविता || हिन्दी दिवस पर शायरी || 

नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका हिन्दी को समर्पित इस पेज पर। हिन्दी दिवस के मौके पर मेरी एक कविता,

ज्ञानार्जन का साहस देकर 

मुस्काती दिखती मां हिंदी 

पढ़ लिखकर नूतन रचने का 

ऐसा यश देती मां हिंदी 


यहां अनेकों भाषा बोली 

एक सूत्र यह बांधे बोली 

जब शब्दों ने आंखें खोली 

काव्य सजे मानो रंगोली 


भाषा दूजी समझ ना आयी

तुमरे पास सहजता पायी

बहुत धनी है अपनी माई

बोलो हिंदी मेरे भाई

सदानन्द कुमार

समस्तीपुर बिहार

हिन्दी दिवस पर कविता || हिन्दी दिवस पर शायरी || सदानन्द कुमार समस्तीपुर बिहार


बुधवार, 17 मई 2023

Hindi Shayari || Poets from Samastipur

Hindi Shayari || Poets from Samastipur

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आप भी यदि समस्तीपुर और आसपास के लोगों को अपनी शायरी या कविता सुनाना चाहते हैं तो हमें इस नंबर पर व्हाट्स ऐप करें।

9534730777

लिखी अपनी कहानी में तुझे मैंने बताया है

जहां ऐसी जरूरत थी वहां तुझको छिपाया है

रहे तेरी खुमारी में दिया उसका किराया है

लिखा जो कुछ कभी मैंने सुनो वो भी बकाया है


सदानन्द कुमार 

समस्तीपुर बिहार

सभीपुर के कवि सदानंद कुमार









साथ छूटा मैं तमाशा बन गया

ख्वाब टूटा मैं फसाना बन गया

सोचता था मैं अनाड़ी हूं अभी

यार उसका मैं ठिकाना बन गया 


मुहब्बत में दिवानो ने यहां सब कुछ लुटाया है 

असासा बेचकर अपना गिफट उसको दिलाया है

जमाना भूल जाएगा सितम ये की यहां तूने

पुरानी आशिकी के नाम का टैटू छुपाया है

सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार


प्रेम करके हमी से छिपाती रही
गीत मेरे हमेशा सजाती रही
हार कर प्रेम में ना कबूला कभी
हार को जीत नित ही बताती रही

हाथ लाली लगाकर दिखाती रही
‍नाम मेरा हिना से बनाती रही
रंग दो ही सुने थे अभी और वो
ओढ़नी पे कई रंग लाती रही
किधर जाएंगे
तुमको लगता है कि सुधर जाएंगे
सदानन्द कुमार
समस्तीपुर बिहार

शनिवार, 6 मई 2023

पूस प्रवास भाग 09 और 10 || Short Stories in Hindi || Hindi Kahani || Desi Kahani

Welcome to Short Stories in Hindi || Hindi Kahani blog.

पूस प्रवास भाग 09

सफरनामा

बीच सफर में अपने चोरी हो चुके सूटकेस से गूची जी का मन अब इतना विचलित हो चुका था कि अब गूची जी को समूचा संसार ही 420 बुझा रहा था, पर कहीं ना कहीं उनका मासूम दिल ये भी मानने को तैयार नहीं हो रहा था कि इतनी शांतचित्त मृगनयनी सुंदरी उसका सूटकेस उठाने जैसा तुच्छ काम करेगी, बात विचार और आभामंडल से तो वो किसी प्रेमनगर की प्रिसेंस लग रही थी।

अब प्रिंसेस सरीखी लड़कियां अगर ट्रेन के स्लीपर क्लास में नीरीह जनता के सूटकेस टपाने लगे तो ये बेचारे चोर उचक्के और जगत में विचरन कर रहे लफंडरों के सामने तो रोजगार की विकट समस्या उत्पन्न हो जाएगी ।

ऐसे ही कई ऊटपटांग विचारों में मुग्ध गूची जी ऐसे सुन्न से बैठे मालूम पड़ रहे थे मानों अपनी अंतरात्मा से अपने सूटकेस के मुक्ति का मार्ग पूछ रहे हों । गूची जी को इतने गंभीर चिंतन में गुम देख सहयात्रियों को ये बात बिल्कुल स्पष्ट हो गयी कि गूची जी को सूटकेस का बहुत गंभीर सदमा लगा है । सामने बैठे बुजुर्ग दंपति में से चाचा जी को तो गूची जी पर तनिक भी दया नहीं आई पर गूची जी को ऐसे मौन बैठे देख चाची के दिल में थोड़ी करूणा आई और ममत्व वश वह पूछ बैठी कि बेटा सूटकेस में कोई बहुत जरूरी चीजें थी क्या ? इससे पहले कि गूची जी हां या नहीं कहते चाचा जी बोल पड़े - " अरे ! अगर जरूरी चीजें नहीं होती तो ये अपने छाती पर लादकर उस सूटकेस को क्यूं लाता ? " यह सुनकर गूची जी ने निरूत्तर रहना ही ठीक समझा पर यह सवाल सुनकर गूची जी के मन में एक बात कौंधी कि सूटकेस में तो ऐसे कई जरूरी सामान थे पर एक दो फटेहाल बनियान और छेद युक्त कच्छे भी तो थे, भले ही उस सुंदरी ने चोरी के इरादे से सूटकेस उठाया था पर सूटकेस खोलते ही वो मेरे फटेहाली से अवगत हो जाएगी । ये सोचकर गूची जी के आंखों के सामने और भी अंधेरा छाने लगा। 

यूं तो संसार में यह बात व्याप्त है कि पुरुष का मन बड़ा ही कठोर होता है पर बात अगर किसी नवयौवना की हो तो गूची जी जैसे पुरुष बड़े उदार मन से उसके लिए अपना सूटकेस तो क्या अपनी जमीन जायदाद भी लूटा देते, ऐसे पुरुष नवयुवती के लिए हमेशा क्षमाशील बने रहते हैं, चाहें नवयुवतियां उनकी लंका ही क्यूं ना लगा दें पर इतने उदार हृदय से क्षमाशील बने रहने का कभी कभी कोई फायदा नहीं क्योंकि नए कल्चर के लोग इसे ठरकपन के रूप में परिभाषित कर देते हैं, खैर,, जो भी हो,,

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" पूस प्रवास भाग 10 "

वैसे तो सफ़र में लूट जाने का एहसास इतना भारी है कि इस पर कई तरह के मारक और दिल का दर्द बयां करते हुए कई तरह के शेरों शायरी व नगमें लिखें जा सकतें है पर चूंकि अपने गूची जी के लिए यह जीवन का पहला अनुभव था इसलिए वो फिलहाल बस मन ही मन उस मृगनयनी को उसकी बेवफ़ाई के लिए याद करते जा रहे थे, ध्यान दीजिएगा कि याद करते जा रहे थे कोस नहीं रहे थे, बल्कि कहीं न कहीं उनके मन में मृगनयनी को कोसने के बजाय अब हल्की हमदर्दी का भाव उभर आ रहा था कि हाय कितनी मजबूरी में रही होगी बेचारी जो ऐसा सुंदर रूप होते हुए बेचारी को चोरी जैसा तुच्छ काम करना पड़ रहा है ।

गूची जी के मन में तो अब ऐसे भाव आ रहे थे कि मानों यदि गूची जी को पहले से पता होता कि वो मृगनयनी उसका सूटकेस टपाने वाली है तो खुद गूची जी अपने जेब से निकालकर सूटकेस में कुछ रूपए रख देते, कम से कम बेचारी उस लड़की की कुछ मदद हो जाती और यदि सूटकेस खोलते ही उस मृगनयनी को कुछ रूपए मिल जाते तो गूची जी की कंगाली भी उजागर होने से बच जाती लेकिन हाय रे संजोग कि जिंदगी पहले से कुछ बताती नहीं ।

ऐसे ही कुछ महान विचारों में लीन गूची जी अपने सीटबर्थ पर किसी विशालकाय कछुए की भांति बिल्कुल शांत पड़े हुए थे, बगल की सीट पर सफ़र कर रहे बुजुर्ग दंपति में से चाची फिर बोल उठी- " बेटा, मन छोटा मत करो, सामने वाले स्टेशन पर उतर कर कम से कम एक शिकायत ही लिखवा देना, अब सूटकेस तो मिलने से रहा कम से कम एक कागज तो रहेगा तुम्हारे पास कि तुम्हारा सूटकेस चोरी हुआ है । क्या पता कहीं रेलवे वालों की तरफ से कुछ हर्जाना ही मिल जाए " चाची की बात सुनकर गूची जी की चेतना थोड़ी वापस आई, उन्होंने सोचा कि बात तो सही है आखिर उनका सूटकेस गायब होने का कुछ तो सबूत होना ही चाहिए और अगर कहीं रेलवे वालें दया धर्म दिखा गए तो उनको अपने छेद युक्त कच्छो का हर्जाना मिलेगा वो अलग ।

इतना सोचते ही आंखों में चमक लिए गूची जी उठने को हुए ही थे कि चाचा जी चाची से बोल पड़े - " हर्जाना ?? क्या बड़बड़ाती हो ? हर्जाना मिले ना मिले पर शिकायत लिखवाने के चक्कर में जो पैसे जेब में है वो भी रिश्र्वत के नाम पर निकल जाएंगे । "

ऐसा कटू सत्य सुनकर गूची जी फिर कछुआ हो गए, किसी ने बिल्कुल सही कहा है कि सच तो कड़वा होता है ।

खैर, जैसे तैसे अपने दिल का दर्द लिए गूची जी का सफ़र और रेल दोनों धीरे धीरे अपने मंजिल की ओर बढ़ते जा रहे थे । गुनगुने धूप में चल पड़ी रेल अब हाड़ कपकपा देने वाली ठंड कोहरे और रात के अंधेरे से होती हुई धीरे धीरे एक स्टेशन पर सुस्ताने को हुई, ट्रेन के स्टेशन पर रुकते ही बुजुर्ग चचा ने गूची जी को लगभग आदेशात्मक लहजे में साथ में एक कप चाय पी आने को कहा, शायद चचा भीतर ही भीतर गूची जी के मनोभावों को समझ रहे थे, आखिर किसी ज़माने में चचा भी दिल और दिमाग के इसी कैमिकल लोचे से गुज़रे होंगे । वैसे तो चचा को दिली इच्छा थी कि गूची उसके साथ नीचे चाय पीने आए ताकि चचा उसे अपने जवानी की नादानियों से अर्जित करे गए अनुभव और सीख बता सकें, चचा को ऐसा लगता था कि उनके द्वारा दिया गया ज्ञान गूची के दर्दे दिल की दवा बन सकता है क्योंकि इस ज्ञान की बात के मूल में यह तर्क था कि ख़ुबसूरत लड़कियां भोले भाले लड़कों को उल्लू बनाती ही हैं पर यह ज्ञान वो चाची के सामने गूची को नहीं दे सकते थे वरना चाची उनसे उनके जवानी के दिनों का हिसाब मांग बैठती । लाख टोनियाने के बाद भी गूची जी का मन नीचे जाने को नहीं हुआ और चचा को अकेले ही अपने ज्ञान की घुट्टी और चाय पीने नीचे उतरना पड़ा,,

क्रमशः,,,,

सदानन्द कुमार

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