शनिवार, 12 नवंबर 2022

पूस प्रवास भाग 05 और 06 । हिन्दी कहानियां ।

" पूस प्रवास " भाग- 05
( सफरनामा )


गूची जी के मूल प्रश्नों का निवारण तो लगभग हो चुका था, पर इस सुंदर  नवयुवती से लगातार संवाद की लालसा गूची जी के मन से ना जाती थी, सो रह रह कर एक छोटू मोटू गोलू लोलू सा सवाल नवयुवती की तरफ उछाल देते थे । अब तक तो नवयुवती सामान्य शिष्टाचार और सीट पर टिके रहने की मजबूरी में धैर्य से काम ले रही थी पर अब उसके चंद्रमुखी चेहरे पर खीझ की रेखा लम्बी होती जा रही थी । इस बार भी बड़ी उत्सुकता से गूची जी ने तरूणी के तरफ एक बेहद व्यवहारिक प्रशन फेंका- 
" आपने अभी तक अपना नाम नहीं बताया । "
इस बार थोड़ी खीझ के साथ तरूणी ने गूची को देखा, लड़की के देखने के तेवर से गूची को ऐसा आभास हुआ मानों यह प्रशन पूछ कर उसने इस बार लक्ष्मण रेखा लांघ दी है ।
थोड़ी देर तो लड़की बिल्कुल ही मौन रहीं, मानों अपने क्रोध रूपी विष को कंठ में ही धारण करने की प्रेक्टिस कर रही हो और लड़की को ऐसे मौन हुए देखकर गूची जी ने सोचा कि कहीं ये तूफां से पहले का सन्नाटा तो नहीं पर फिर लड़की ने मुख पर एक उदार कृत्रिम मुस्कान बिखेरते हुए कहा कि- " जी मेरा नाम कल्लू है " 
"अरेर , आप जैसी सुंदर और माडर्न लड़की का नाम कल्लू !!  ये कैसा नाम है, ? " गूची ने बिना किसी विस्मय के साधारण भाव से ये बात कही क्योंकी गूची समझ रहा था कि लड़की ने खीझ कर ये नाम बताया है । इधर लड़की के सब्र का बांध गूची के सवालों के थपेड़े से बस टूटने ही वाला था शायद इसलिए लड़की ने अपने बैग से कुछ दालमूट और चिप्स के पैकेट निकाले और एक पैकेट गूची को भी आॅफर किया । गूची को लगा शायद लड़की सवालों से मुक्ति चाहती है इसलिए मुंह बंद करवाने को चिप्स आॅफर कर रही है, शुरूवाती ना नुकुर के बाद गूची जी ने झेंप कर चिप्स का वो पैकेट ले ही लिया और खाने लगे । गूची को चिप्स खाता देख लड़की के चेहरे पर सुकून के भाव उभरे, गूची को लगा शायद सच में लड़की मेरे सवालों से बोर चुकी थी, फिर गूची ने अपने स्वाभिमान की खातिर मन ही मन तय किया कि अब वो लड़की से कोई बातचीत नहीं करेगा और चुपचाप सो रहेगा ।,,
क्रमशः,,
" पूस प्रवास " भाग- 06
( सफरनामा )
यूं तो कहते हैं कि इंसान अपने संवेदनाओं के कारण ही इंसान हो पाता है, इन संवेदनाओं में प्रेम सबसे ताकतवर संवेदना होती है । इंसान जब किसी मनोभाव के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता है तो उसे किसी दूसरे मनोभाव से प्रतिस्थापित कर लेता है जैसे यदि किसी के प्रति मन में ईर्ष्या उत्पन्न हो जाए और यह ईर्ष्या विसराने योग्य ना हो तो धीरे धीरे मन उस ईर्ष्या को द्वेष में बदल लेता है, ठीक वैसे ही जब प्रेम का प्रत्युत्तर प्रेम में ना मिले तो मानव मन को अपना स्वाभिमान याद आता है। इस लड़की के ऐसे तंज भरे लहजे ने भी गूची जी के स्वाभिमान को जागृत कर दिया था, सो संवाद की लाख लालसा होते हुए भी उन्होंने इस लड़की से अब बात ना करने की लगभग कसम खा ली थी, हां लेकिन इतना शिष्टाचार जरूर बनाए हुए थे कि लड़की को बैठने में कोई तकलीफ़ ना हो, सीट के बिल्कुल कोने में बैठी हुई लड़की को पूरी सीट दे देने की प्रबल इच्छा हो रही थी परन्तु अपना स्वाभिमान बार बार आड़े आ जा रहा था, किसी तरह गूची जी अपना हाथ पांव समेटे बर्थ के दूसरे कोने में दुबके हुए थे, कुछ कुछ ये ठंड का भी असर था, ज्यो ज्यो ट्रेन बिहार की तरफ बढ़ती चली जा रही थी ठंड भी पूरी तरह जमीं पर उतर आने को आतुर हो रहा था, कोहरे ने तो वैसे भी ट्रेन के पहियों को भारी कर रखा था, घने कोहरे में बमुश्किल ही आगे का कुछ हिस्सा दिख पाता था, जल्द ही इस सफर ने हसीं शाम के बाद शबनमी रात में प्रवेश किया, वैसे तो ट्रेन के सफर में सो जाना गूची जी के यात्रा कौशल पर प्रश्नचिन्ह के माफिक था, पर पता नहीं कैसे उकडू होकर लेटे हुए होने के बावजूद इस बार उनकी आंख लग गयी थी । आंखें खुली तो कैसा विस्मयकारी परिदृश्य देखा गूची जी ने, लगभग चित्कार भरे लहजे में बगल के बुजुर्ग सहयात्री दंपति से पूछा- " अरेरर, यह लड़की कहां गई, " इतने आत्मविश्वास के साथ गूची ने उस लड़की की खोज लेनी चाही मानों उस लड़की की पूरी जिम्मेदारी परमात्मा ने गूची को ही सौंपी थी । बगल के वृद्ध सज्जन ने कहा - " कहां गई मतलब ? वो तो तुम्हारे साथ थी ना, क्या बिना बताए उतर गई? " 
 गूची ने किसी लूटे पिटे सम्राट के भाव लेते हुए पूछा - " मेरे साथ !! नहीं तो !! मैंने तो बस उसे यहां बैठने भर की जगह दी थी ?? पता नहीं ?? कौन से स्टेशन पर उतर गई ? " 
बुजुर्ग ने मुख मंडल की भाव भंगिमा बिगाड़ते हूए कहा- "अब तुम लोग इतने सहज भाव के साथ चना चबेना का आदान-प्रदान कर रहे थे कि हमें तो लगा कि तुम दोनों साथ में ही हो, जब वो जमुई स्टेशन के पास जाने को हुई तो हमें तो थोड़ा अचरज हुआ पर कुछ बोलना हमने उचित नहीं समझा ।" 
बुजुर्ग की बातें गूची जी के मन मस्तिष्क पर ऐसा आघात कर रही थी मानो गूची जी ने किसी जीती हुई लाॅटरी का टिकट खो दिया हो । 
क्रमशः,,,

सदानन्द कुमार

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सोमवार, 7 नवंबर 2022

पूस प्रवास भाग 3 और भाग 4

" पूस प्रवास " भाग-03

 ( सफरनामा )
यूं तो हम भारतीय लोगों के लिए रेल का सफर महज दो स्थानों के बीच की दूरी तय करने भर की बात नहीं होती । हमारे लिए रेल की यात्रा हर बार एक संस्मरण की जननी होती है, लेकिन जब मन किसी गंभीर चिंतन मनन में लीन हो तब हर सुखद परिस्थिति आनन्द दे ये जरूरी नहीं । हमारे गूची भाई भी किसी तरह रेल मे सवार हो तो गए लेकिन उनका मन अब भी नौकरी और जीवन में ज्ञान के असली निहितार्थ के बीच में झूल रहा था । किसी तरह मन को तात्कालिक विश्राम देकर गूची जी ठसाठस भरें कोच में धीरे धीरे कछुए के माफिक अपना दो सूटकेस लिए अपने सीट के तरफ बढ़े, अपने सीट पर आकर गूची जी ने जैसे ही अपना सूटकेस अपने बर्थ पर टिकाया कि पास खड़ी कोमल काया , आधुनिक मेकअप से सुसज्जित और मनहर ऐटिट्यूड वाली नवयुवती धीरे से गूची जी के सीट पर कोने में सरक कर बैठ गई, वैसे तो अगर इस कोमल काया लड़की के जगह कोई हालात का मारा पुरुष गूची के सीट पर बैठता तो गूची जी इसे अपने अधिकारों का हनन और सीट पर नाजायज अतिक्रमण समझते पर बात यहां कोमल काया मृगनयनी की थी तो मजाल है कि गूची जी के मुख से आपत्ति का आ भी निकल जाए । गूची तो मन ही मन सोच रहे थे कि ससुरा जीवन इतना भी नीरस नहीं जितना वो अभी समझ रहा था, बैठने को तो यह लड़की बगल की सीट पर भी बैठ सकती थी पर मेरे ही सानिध्य में बैठना शायद किसी सुखद परिणीती की सूचक हैं । 
बड़ी ही झिझक से गूची जी ने दांत निपोरे एक बड़ा विनम्र सवाल इस नवयौवना की तरफ दागा- " जी, वो आपकी सीट कौन सी है ? " 
तरूणी ने भी बड़ी आत्मीयता के साथ कहा कि " जी फिलहाल तो मेरी सीट कन्फर्म नहीं है, वेटिंग है, आप बहुत सभ्य और सौम्य लगे इसलिए मैं यहां बैठने का साहस कर पाई । आपको अगर तकलीफ़ ना हो तो क्या मैं यहां थोड़ी देर बैठ जाऊं, टीटी के आते ही मैं कुछ एरेजमेंट कर लूंगी । " 
गूची जी ने इस कन्या के मुख से संपादिक वाक्यों में बस इतना ही सूना कि "आप मुझे बहुत सभ्य और सौम्य लगें, बस इतना ही सूना कि गूची जी के मन में इतना बड़ा लड्डू फूटा कि उसके धमाके में गूची जी ने आगे कुछ सूना ही नहीं, बस भाव विभोर होकर मुण्डी डोलाते रह गए ।
क्रमशः,,,

                      " पूस प्रवास " भाग-04
                              ( सफरनामा )
यूं तो स्त्री पुरुष में आकर्षण के कई आयाम हो सकतें हैं परंतु मानव गुण धर्म पर पीएचडी ढोक चुके स्काॅलरस का ऐसा मानना है कि हास्य विनोद में पारंगत पुरुष, स्त्रियों को, और रूपवती स्त्रियां, पुरुषों को स्वाभिक रूप से आकर्षित करते हैं । हमारे गूची जी भी ऐसे ही रूपवती सहयात्री के सहयोग की कामना करते हुए सफ़र को एन्ज्वाय करते चले जा रहे थे परन्तु वार्तालाप शुरू करने में गूची जी सहजता महसूस नहीं कर पा रहे थे । शायद गूची जी कि इसी असहजता को महसूस करते हुए  नवयौवना ने स्वयं ही संवाद शुरू किया और बड़े ही सौम्य लहज़े में पूछा-" आपने बताया नहीं कि आपको कोई तकलीफ़ तो नहीं अगर मैं यहां थोड़ी देर बैठ जाऊं ।"
गूची जी लगभग घिघयाते हुए बोले-" नहीं नहीं मुझे कोई तकलीफ़ नहीं, आप आराम से बैठे ।" 
इतना कहते हुए गूची जी ने एक प्रशन भी साथ साथ चिपका दिया " क्या आप अकेले सफर कर रही हो ।"
अब लड़की ने अपनी मंद मुस्कान के साथ संवाद में मिश्री घोलते हुए कहा- " यस, आई एम टोटली एलोन, बट ईट्स फाईन । " 
गूची ने मानो ऐसी ब्युटीफुल ईग्लिश जीवन में पहली बार देखा था अअ , मेरा मतलब सुना था😜 पर मदहोशी को कंन्ट्रोल करते हुए बोले -" यस, नो ईश्शू , पर आप अकेली क्यूं , वो भी वेटिंग टिकट के साथ, क्या परेशानी नहीं होगी? "
अब तक लड़की गूची जी के वजन को तौल चुकी थी इसलिए तपाक से बोली " जी  आप जैसे सभ्य लोग के होते हुए , उतनी परेशानी नहीं । वैसे भी मैं यहां कलकत्ते से इंजीनियरिंग कर रही हूं, महीने दो महीने में एक बार घर जाती ही रहतीं हूं, हर बार कन्फर्म टिकट तो नहीं मिलता, मुझे आदत है, वैसे भी मात्र छः सात घंटे का ही सफर है । "
शायद लड़की ने एक बार में इतना सब इसलिए कह बताया ताकि गूची जी के तरफ से अब कोई अवांछित प्रशन ना उठे ,,,
क्रमशः,,,
सदानन्द कुमार
सदानन्द कुमार
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